जागरण संवाददाता। उत्तराखंड में कोरोना की दूसरी लहर कमजोर पड़ चुकी है। इस मोर्च पर अब राहत के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं, जिसकी आंकड़े भी तस्दीक कर रहे हैं। बुधवार को प्रदेश में कोरोना के 33 मामले आए, जबकि एक मरीज की मौत हुई। इधर, विभिन्न जनपदों में 140 मरीज स्वस्थ भी हुए हैं। अच्छी बात ये है कि संक्रमितों की तुलना में कहीं ज्यादा लोग हर दिन स्वस्थ हो रहे हैं। ऐसे में सक्रिय मामले भी घटकर 711 रह गए हैं।
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मगर, जिस तरह उत्तराखंड पर्यटक स्थलों पर भीड़ एकत्र हो रही है, वह चिंतित करने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस पर चिंता जता चुके हैं। इसे गंभीरता से लेते हुए बीते वीकेंड में मसूरी और नैनीताल में होटल में बुकिंग के बगैर पर्यटकों को प्रवेश नहीं दिया गया। यह अच्छा कदम है, लेकिन इसका दायरा मसूरी-नैनीताल तक ही सिमटा नहीं रहना चाहिए। कोरोना की तीसरी लहर की संभावना को न्यून करने के लिए आवश्यक है कि ऐसे प्रतिबंध हर पर्यटक स्थल पर लागू हों। सैलानियों से कोविड गाइडलाइन का अनिवार्य रूप से पालन कराया जाए। तीसरी लहर के संभावित खतरे से बचने के लिए सैलानियों को भी गंभीरता दिखानी होगी। कोरोना पर काबू पाने की जिम्मेदारी सिर्फ शासन-प्रशासन की ही नहीं है।
बिजली पर चर्चा, पेट्रोल उदास
वैसे तो बहुमत में चर्चा का विषय वो होता है, जिसके लिए खर्चा ज्यादा होता है। मगर, इन दिनों उत्तराखंड में स्थिति उलट है। हर तरफ बिजली की चर्चा का करंट दौड़ रहा है। क्या आम और क्या खास, सभी की जुबां पर एक ही नाम है बिजली। दूसरी तरफ पेट्रोल बेचारा उदास खड़ा है। हो भी क्यों न? आखिरकार महंगाई के पहाड़ पर चढ़ते-चढ़ते शताब्दी का आंकड़ा पार कर चुका है। केंद्र की सरकार हो या राज्य की, सबकी जेब भरने में टाप पर चल रहा है। लेकिन, उसकी चर्चा छोड़िए कोई सुधलेवा भी नहीं दिख रहा। उससे कहीं कम कमाई वाली बिजली पर दिनभर डिबेट हो रही है। इन हालात में डीजल और रसोई गैस, पेट्रोल को सांत्वना देने में जुटे हैं। समझा रहे हैं कि तरक्की तो हमारी भी हो रही है, मगर पूछ कोई नहीं रहा। सब्र रखिये बड़े भाई चुनाव में हम भी ट्रेंड करेंगे।
बनाए रखिए नदियों की गरिमा
सनातन धर्म में गंगा को मोक्षदायिनी माना गया है तो हरिद्वार में हर की पैड़ी वह स्थान है, जहां गंगा में स्नान करने से मोक्ष प्राप्त होता है। यहां गंगा के अमृत समान जल का आचमन करने के लिए देशभर से श्रद्धालु आते हैं। ऐसे में यहां गंगा के तट पर कुछ यात्रियों का हुक्का पीते पकड़ा जाना व्यथित करता है। खैर, यह पहली बार नहीं है, जब गंगा तट पर कोई असामाजिक कृत्य सामने आया हो। गंगा ही क्यों, वर्तमान में हर नदी के किनारे ऐसे कृत्य देखने को मिल रहे हैं। आनंद के नाम पर नदियों के किनारे नशा करने की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है। कई बार नदी किनारे नशा करने वालों को हादसे के रूप में इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। हमें समझना होगा कि हमारी संस्कृति का नदियों से गहरा रिश्ता है। इस रिश्ते की गरिमा बनाए रखने से ही हमारा अस्तित्व सुरक्षित रहेगा।
फिर ठग ली गई आस्था
अभी तीन रोज पहले ही उत्तराखंड तीर्थनगरी यानी ऋषिकेश में एक फर्जी बाबा को गिरफ्तार किया गया। उस पर एक नामी ज्वेलर की पत्नी के इलाज के बहाने लाखों रुपये ठगने का आरोप है। देश में आस्था के नाम पर ऐसी धोखाधड़ी के मामले अक्सर सामने रहते हैं। आस्था को ढाल बनाकर ऐसी कुत्सित मानसिकता वाले लोग धन से लेकर तन तक का शोषण करने में पीछे नहीं हटते। इस सबके बीच सवाल यह भी उठता है कि हम आस्था के वशीभूत होकर अपना विवेक कैसे खो देते हैं। अपनी गाढ़ी कमाई ऐसे व्यक्ति को कैसे सौंप देते हैं, जिसे भली प्रकार जानते तक नहीं। कम से कम ऐसी घटनाओं से तो सबक लेना ही चाहिए। किसी पर भी विश्वास से पहले उसका अतीत तो जान ही लेना चाहिए। हमारी यह जागरूकता ही ऐसे ढोंगियों की बढ़ती संख्या पर लगाम लगा सकती है। इसी तरह इनसे समाज की सुरक्षा संभव है।
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