Dehradun Max Hospital: में लांच हुआ पहला रेडियल हीलिंग सेंटर

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देहरादून। Dehradun Max Hospital: कार्डिएक कैथीटेराइजेशन पिछले कई दशकों में एक लंबा सफर तय कर चुका है, जिससे प्रक्रियाओं को सुरक्षित, तेज और ऐसी तकनीकों के साथ बनाया गया है जो बीमारी से ठीक होने के समय को काफी कम कर देती हैं और रोगियों के अनुभव में सुधार करती हैं। इसे रेडियल एक्सेस के माध्यम से प्राप्त किया गया है। रेडियल एक्सेस तब होता है जब पैर या कमर में प्रवेश बिंदु की जगह कलाई में रेडियल धमनी का उपयोग कैथेटर के लिए प्रवेश बिंदु के रूप में किया जाता है।

मैक्स सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल, देहरादून रेडियल एक्सेस का एक बड़ा समर्थक

मैक्स-सुपर-स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के कार्डियोलॉजी विभाग की एसोसिएट डायरेक्टर डॉ प्रीति शर्मा के अनुसार, ” भारत में ट्रांस रेडियल एक्सेस धीरे-धीरे बढ़ रहा है क्योंकि ज़्यादातर चिकित्सक रक्तस्राव की जटिलताओं को कम करने, रोगी के आराम में वृद्धि और रिकवरी में तेजी के लिए ट्रांस रेडियल एक्सेस पर स्विच कर रहे हैं। ” मैक्स सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल, देहरादून रेडियल एक्सेस का एक बड़ा समर्थक है और इसने उत्तराखंड में पहला रेडियल हीलिंग सेंटर बनाकर इस अवधारणा को एक कदम आगे बढ़ाया है।

Dehradun Max Hospital: कैथ लैब रिकवरी रूम में लागू

डॉ प्रीति शर्मा ने बताया कि पिछले 15 वर्षों में चिकित्सा सुविधा डिजाइन में एक प्रवृत्ति पारंपरिक अस्पतालों के ऊसर और संस्थागत ढांचे से दूर हो गयी है। इसके बजाय, रोगियों को अधिक सहज महसूस कराने के लिए अधिक आमंत्रित, गर्मजोशी और मैत्रीपूर्ण दिखने वाली सुविधाओं का निर्माण किया जा रहा है। इस अवधारणा को अब कैथ लैब रिकवरी रूम में लागू किया जा रहा है। रेडियल एक्सेस का उपयोग तत्काल रिकवरी को बढ़ावा देता है जिसमें रिकवरी रूम के डिज़ाइन, बिस्तरों की जगह काउच जैसे बड़े संशोधन हुए हैं।
डॉ प्रीति शर्मा नें बताया “मरीज 30 मिनट से एक घंटे तक लाउंज कुर्सियों में बैठते हैं। इसके बाद मरीजों को चलने की अनुमति दी जाती है। वे घूम सकते हैं या चाय/कॉफी की चुस्की ले सकते हैं और अखबार पढ़ सकते हैं।”
“रिकवरी रूम में बेड के बजाय आराम से बैठने वाली कुर्सियाँ हैं। रेक्लाइनर में स्विंग-अप टेबलटॉप लगे होते हैं जहां मरीज अपना नियमित कार्य कर सकते है। इसका मुख्य उद्देश्य चिंता को खत्म करना और रोगियों को अधिक आमंत्रित वातावरण प्रदान करना है।” डॉ प्रीति नें कहा
डॉक्टर ने कहा “एक सामान्य अस्पताल सेटिंग की तुलना में मरीज अधिक आराम से होते हैं। उनपर की गयी प्रक्रिया के बाद उन्हें चलने की अनुमति देने से उनकी चिंता कम हो जाती है।”

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