General Insurance Amendment Bill: हाल ही में संसद में जनरल इंश्योरेंस बिल को मंजूरी दी गई। इसके बाद विपक्षी दलों ने इस विधेयक को पारित किए जाने का विरोध किया। चर्चा के दौरान राज्यसभा में जमकर हंगामा हुआ। विपक्ष के कुछ सांसदों ने बिल की कॉपी तक फाड़ दी और लगातार नारेबाजी होती रही, जिससे संसद की कार्यवाही भी बाधित हुई। अब लोग ये जानना चाह रहे हैं कि आखिर बिल में ऐसा क्या है, जिसे लेकर संसद में इतना हंगामा हुआ? जल्द ही सरकार एलआईसी का आईपीओ (LIC IPO) लाने वाली है और इस बदलाव के बाद उसका रास्ता भी साफ होने की बात कही जा रही है। आइए जानते हैं क्या है जनरल इंश्योरेंस बिल के अंदर।
ASHA workers: ने किया आर-पार लड़ाई का ऐलान
क्या है प्रावधान?
इस विधेयक के माध्यम से साधारण बीमा कारोबार (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम 1972 (General Insurance Business (Nationalisation) Act, 1972) में संशोधन किया जा रहा है। इसमें भारतीय बीमा कंपनियों और अन्य मौजूदा बीमा कंपनियों के उपक्रमों के शेयरों के अधिग्रहण और हस्तांतरण की अनुमति का प्रावधान किया गया था। सरकार एलआईसी का आईपीओ लाने की तैयारी में है। इस विधेयक के पारित होने से उसका रास्ता साफ होगा।
सरकार को 51 फीसदी स्टेक नहीं रखना होगा अपने पास-51-
General Insurance Amendment Bill: का मकसद पब्लिक सेक्टर की इंश्योरेंस कंपनियों में प्राइवेट भागीदारी बढ़ाना है। इस बिल के जरिए सरकार उस प्रावधान को बदलना चाहती है, जिसके तहत पब्लिक सेक्टर इंश्योरेंस कंपनियों में सरकार की 51 फीसदी हिस्सेदारी जरूरी है। जनरल इंश्योरेंस बिजनस एक्ट 1972 के तहत जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया कंपनी शुरू की गई थी, जिसकी चार सब्सिडियरी बनीं। ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। 2002 में इन कंपनियों का कंट्रोल सरकार ने ले लिया था और तभी से सरकार को इनमें 51 फीसदी हिस्सेदारी लेनी जरूरी हो गई थी।
सरकार का क्या है तर्क?
सरकार के अनुसार ऐसा करना 4 वजहों से जरूरी कहा जा रहा है, लेकिन विपक्ष उनकी बात नहीं मान रहा। ये वजहें हैं-
1- पब्लिक सेक्टर इंश्योरेंस कंपनियों में निजी हिस्सेदारी को बढ़ावा देना।
2- इंश्योरेंस का लेवल बढ़ाना और सोशल प्रोटेक्शन।
3- पॉलिसी होल्डर्स के हितों का एक बेहतर तरीके से ध्यान रखना।
4- भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी में योगदान देना।
क्या है विपक्ष की मांग?
विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार ने संसद के नियमों का पालन नहीं किया है। विपक्ष चाहता है कि ये पहले हाउस की तरफ से बनाई गई सेलेक्ट कमेटी को भेजा जाए। विपक्ष के मुताबिक संशोधित नियम अधिकतर लोगों के लिए हानिकारक साबित होने वाले हैं। यही वजह से है कि संसद में विपक्ष ने खूब हंगामा किया और नारेबाजी भी की। एक बार बिल पास हो गया तो सरकार के लिए पब्लिक सेक्टर की कंपनियों के निजीकरण का रास्ता आसान हो जाएगा।