Muslim Reservation : लोकसभा चुनाव के बीच पश्चिम बंगाल में कलकत्ता हाईकोर्ट ने ममता सरकार की ओर से वर्ष 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी प्रमाणपत्र रद्द कर दिए हैं। हाईकोर्ट ने फैसले में अप्रैल 2010 से सितंबर 2010 तक ओबीसी के तहत मुस्लिमों को 77 श्रेणियों में दिए आरक्षण व 2012 के कानून के तहत इनके लिए बनाई 37 श्रेणियों को निरस्त कर दिया।
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कोर्ट ने साफ किया कि इस फैसले के दिन से ही रद्द प्रमाणपत्रों का किसी भी रोजगार प्रक्रिया में उपयोग नहीं किया जा सकेगा। इससे करीब पांच लाख ओबीसी प्रमाणपत्र (Muslim Reservation) अमान्य हो जाएंगे। जस्टिस तपोन्नत चक्रवर्ती और जस्टिस राजशेखर मंथा की पीठ ने हालांकि यह भी कहा कि इन प्रमाणपत्रों से जिन उम्मीदवारों को पहले मौका मिल चुका है, उन पर फैसले का असर नहीं होगा।
फैसले में तृणमूल सरकार का जिक्र नहीं
पीठ ने फैसले में तृणमूल सरकार का जिक्र नहीं किया है। संयोग से तृणमूल 2011 से राज्य की सत्ता में है। इसलिए कोर्ट का आदेश सिर्फ तृणमूल सरकार में जारी ओबीसी प्रमाणपत्रों पर प्रभावी होगा। हाईकोर्ट का आदेश 2012 के मामले में आया। पीठ ने कहा कि 2010 के बाद जितने भी ओबीसी प्रमाणपत्र बनाए गए, वे कानून के मुताबिक नहीं हैं। विधानसभा को तय करना है कि अन्य पिछड़ा वर्ग में कौन होगा। प. बंगाल पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग ओबीसी की सूची निर्धारित करेगा। सूची को विधानमंडल को भेजा जाना चाहिए। जिनके नाम विधानसभा से अनुमोदित किए जाएंगे, उन्हें भविष्य में ओबीसी माना जाएगा।
वोट बैंक के लिए कवायद
हाईकोर्ट ने कहा कि इन जातियों को ओबीसी घोषित करने के लिए वास्तव में धर्म ही एकमात्र मानदंड प्रतीत होता है। हमारा मानना है, मुसलमानों की 77 श्रेणियों को पिछड़े के रूप में चुना जाना पूरे मुस्लिम समुदाय का अपमान है। कोर्ट का मन इस संदेह से मुक्त नहीं है कि इस समुदाय को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए एक वस्तु के रूप में माना गया है। 77 श्रेणियों को ओबीसी में शामिल करने संबंधी श्रृंखला और उनके समावेश से स्पष्ट होता है कि इसे वोट बैंक के रूप में देखा गया है।
क्या है मामला?
दरअसल कोर्ट में राज्य के आरक्षण अधिनियम 2012 के प्रावधानों को चुनौती दी गई थी। इन याचिकाओं पर हाईकोर्ट ने बीते दिन आदेश पारित किया। याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील ने दावा किया कि 2010 के बाद पश्चिम बंगाल में ओबीसी के तहत सूचीबद्ध व्यक्तियों की संख्या पांच लाख से अधिक होने का अनुमान है। मई 2011 तक पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा सत्ता में था और उसके बाद तृणमूल कांग्रेस सरकार सत्ता में आई।
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