नई दिल्ली। India Taiwan Policy: भारत का अभी तक ताइवान के साथ कोई औपचारिक व कूटनीतिक संबंध नहीं है। भारत ‘वन चाइना पालिसी’ को ही मान्यता देता है। इसके पीछे कारण यही है कि पहले से ही चीन के साथ सीमा विवादों में घिरा भारत, चीन को ताइवान के मुद्दे पर भड़काना नहीं चाहता हैं। परंतु धीरे-धीरे भारत ने अपनी नीति बदली है। दिसंबर 2010 में चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ जब भारत की यात्र पर आए थे, तब जारी किए गए संयुक्त दस्तावेज में भारत ने ‘वन चाइना पालिसी’ के समर्थन की बात का उल्लेख नहीं किया गया था।
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बीजिंग ने भारत को अपना संदेश दे रखा है कि अगर वह ‘वन चाइना पालिसी’ को बनाए रखता है, तो इससे दोनों देशों के बीच में पारस्परिक विश्वास बढ़ेगा, लेकिन हाल के समय में भारत ने इस पालिसी का समर्थन करने की बात को ठुकरा दिया है, क्योंकि बीजिंग ने भी चीन की यात्रा करने वाले जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को नार्मल वीजा की जगह नत्थी वीजा जारी किया था, जो बात भारत को पसंद नहीं आई।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 में भारत के नवनियुक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में ताइवान के एंबेसडर और तिब्बत के राष्ट्रपति को भी आमंत्रित किया गया था और इसके माध्यम से भारत ने चीन को एक संदेश दे दिया था। भारत ताइवान के साथ व्यापारिक आर्थिक संबंधों को बनाए रखना चाहता है। व्यापार, निवेश, पर्यटन, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच गहरे संबंध हैं।
ताइवान की राजधानी ताइपेई (India Taiwan Policy) में भारत का एक कार्यालय है जो कूटनातिक कार्यों को संपन्न करता है। इसके अलावा एक इंडिया ताइपेई एसोसिएशन और ताइपेई इकोनमिक एवं कल्चरल सेंटर भी है, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। इन दोनों संस्थाओं के जरिए भारत और ताइवान के संबंधों को मजबूती देने की कोशिश की जाती है। बीते वर्षों चीन द्वारा गलवन घाटी में हमले के बाद भारत ने ताइवान में अपने नए राजदूत को भी नियुक्त किया था। चूंकि भारत क्वाड, इंडो पेसिफिक इकोनमिक फ्रेमवर्क जैसे संगठनों समेत प्रशांत महासागरीय सुरक्षा के अभ्यासों का भी हिस्सा है। इसलिए उसका दायित्व बनता है कि वह ताइवान मसले पर बेहतर रणनीति बनाकर आगे बढ़े।
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