नई दिल्ली। Demonetisation Verdict मोदी सरकार द्वारा 2016 में लिए गए नोटबंदी के फैसले को आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Verdict on Notebandi) द्वारा क्लीन चिट मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि सरकार ने आरबीआई से गहन चर्चा के बाद ही यह फैसला लिया है। इस बीच पांच जजों की पीठ द्वारा सुनाए गए इस फैसले में एक जज ने असहमति जताई है। न्यायमूर्ति बी वी नागरथना ने नोटबंदी को गैरकानूनी बताया।
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कानून बनाकर की जानी चाहिए थी नोटबंदी
नोटबंदी पर असहमति (Demonetisation Verdict) का फैसला सुनाने वाले उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति बी वी नागरथना ने कहा कि 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों की पूरी शृंखला को एक कानून के जरिए खत्म किया जाना चाहिए न कि एक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से। जज ने कहा कि संसद को इतने महत्वपूर्ण महत्व के मामले में अलग नहीं छोड़ा जा सकता है।
RBI ने स्वतंत्र रूप से नहीं लिया फैसला
न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा कि केंद्र द्वारा नोटों की एक पूरी श्रृंखला का विमुद्रीकरण करना कहीं अधिक गंभीर मुद्दा है जिसके देश की अर्थव्यवस्था और नागरिकों पर व्यापक असर हुए हैं। जज ने यह भी कहा कि इस फैसले से ऐसा लगता है कि RBI ने जल्दबाजी में केवल सरकार का फैसला मानने के लिए 24 घंटों में नोटबंदी को हरी झंड़ी दी हो।
संसद लोकतंत्र का आधार
न्यायाधीश ने कहा कि प्रस्ताव केंद्र से आया था जबकि आरबीआई की राय मांगी गई थी और केंद्रीय बैंक द्वारा दी गई ऐसी राय को आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत ‘सिफारिश’ के रूप में नहीं माना जा सकता है। उन्होंने आगे कहा कि संसद लोकतंत्र का आधार है और इसके बिना, लोकतंत्र पनप नहीं सकता। फैसले का जिक्र करते हुए जज ने कहा कि इतने महत्वपूर्ण मामले में संसद को अलग नहीं किया जा सकता।
पीठ ने 4-1 से सुनाया फैसला
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को सही बताते हुए 4-1 के बहुमत से फैसला सुनाया। कोर्ट ने सरकार के नोटबंदी करने के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि निर्णय लेने की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण नहीं थी। शीर्ष अदालत ने इसी के साथ नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं को खारिज कर दिया।
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