नई दिल्ली। BJP Foundation Day भारतीय जनता पार्टी (BJP) आज के समय देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है। “बीजेपी यूट्यूब चैनलों और ट्विटर हैंडल से पैदा नहीं हुई है, बीजेपी जमीन पर काम करके, गरीबों के साथ तपकर आगे बढ़ी है।” देश के प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी ने यूं ही इस बात का जिक्र नहीं किया, 6 अप्रैल 1980 में भारतीय राजनीति के अस्तित्व में आई । साथ ही प्राथमिक सदस्यता के मामले में यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दल है।
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श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय ने रखी नींव
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की प्रमुख राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी का इतिहास उसके नाम और चिह्न से भी पुराना है। सनद रहे कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को पछाड़कर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने की शुरुआत दो लोगों के साथ हुई। श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक भारतीय राजनीतिज्ञ बैरिस्टर और शिक्षाविद थे, जिन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति मंत्री के तौर पर काम किया। जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर नेहरू से गहरे मतभेद होने के कारण उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर जनसंघ की स्थापना की, जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी बना। 1951 के वक्त जनसंघ का चुनावी चिह्न दीपक हुआ करता था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी और सामाजिक कार्यकर्ता दीनदयाल उपाध्याय की जोड़ी ने इस पार्टी की बुनियाद खड़ी की, तो अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने पार्टी की पहुंच को देशभर में विस्तार देने का काम किया और आज के समय में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने भाजपा पार्टी को भारतीय राजनीति का सबसे मजबूत स्तंभ बना दिया है।
भारतीय जनसंघ के नेता शुरू से ही कश्मीर की एकता, गोरक्षा, जमींदारी व्यवस्था और परमिट-लाइसेंस-कोटा राज को खत्म करने जैसे मुद्दों पर मुखर रहे। हालांकि, साल 1952 में देश के पहले आम चुनाव में यह पार्टी कुछ ज्यादा खास करने में नाकाम रही। पार्टी को महज 3 सीटें मिली।
‘कमल’ की जगह ‘हलदार किसान’ ने ले ली (BJP Foundation Day)
वक्त गुजरता गया और देश की राजनीति में कई बदलाव आते चले गए। भारत की आजादी के बाद कांग्रेस एकमात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी थी, जिसका पूरे देश में डंका बज रहा था। जवाहर लाल नेहरू के बाद कांग्रेस की कमान संभाल रही इंदिरा गांधी ने साल 1977 में आपातकाल खत्म करने की घोषणा की।
आपातकाल की वजह से देशभर में बड़ी तादाद में लोगों के मन में कांग्रेस को लेकर आक्रोश था। जनता कांग्रेस की जगह कोई और राजनीतिक दल के विकल्प की मांग कर रही थी। समाजसेवी जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर एक नए राष्ट्रीय दल ‘जनता पार्टी’ का गठन किया गया।
इसी दौरान जनसंघ को जनता पार्टी बनाने की मांग उठने लगी। जनता पार्टी की छत के नीचे कई छोटे राजनीतिक दल आकर खड़े हो गए। इसी दौरान भारतीय जनसंघ का चुनाव चिह्न ‘दीपक’ से बदलकर जनता पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हलधर किसान’ में बदल गया।
जनता पार्टी का बनना सफल साबित हुआ और देशवासियों ने इंदिरा गांधी की जगह जनता पार्टी पर भरोसा जताया। मोरारजी देसाई को देश के नया प्रधानमंत्री बनाया गया। हालांकि, कुछ वक्त के बाद पार्टी में नेताओं के बीच कलह की खबरें आने लगी। यह पार्टी जनसंघ के आए नेताओं के दोहरे सदस्यता और विश्वास के मुद्दे पर टूट गई।
‘अटल और आडवाणी’ ने बदली तस्वीर
इसके बाद जनता पार्टी में मौजूद संघ के नेताओं का मानना था कि अब नए राजनीतिक दल बनाने की जरूरत है। इसके बाद योजना के तहत 6 अप्रैल 1980 के दिन मुंबई में एक नई राजनीतिक पार्टी की स्थापना हुई। पार्टी का नाम रखा गया ‘भारतीय जनता पार्टी।’ बता दें कि इसी दिन साल 1930 में महात्मा गांधी ने डांडी यात्रा के बाद नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था। उस समय ‘अटल और आडवाणी’ भारतीय जनता में दो बड़े चेहरे बनकर उभरे। साल 1984 में देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई और उसी साल आम चुनाव कराए गए, जिसमें बीजेपी को सिर्फ 2 सीटें हासिल हुई। इसके बाद साल 1986 में लालकृष्ण आडवाणी को पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर राम जन्मभूमि आंदोलन की आवाज बुलंद की। पार्टी में एक ओर जहां लालकृष्ण आडवाणी जैसे हिंदू राष्ट्रवाद नेता मौजूद थे, जो हिंदू धर्म को लेकर काफी मुखर थे। वहीं, अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसा नेता थे, जो गांधीवादी समाजवाद पर भरोसा रखते थे और वो काफी नरम मिजाज के माने जाते थे।
पार्टी ने उस वक्त एक बड़ा फैसला लिया और अटल बिहारी वाजपेयी की जगह लाल कृष्ण आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष का कमान सौंप दिया गया। 1980 से लेकर अगले 6 साल तक रहे वाजपेयी की जगह तेज-तर्रार और राम मंदिर के मुद्दे पर मुखर होकर बोलेने वाले आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष बनाने का फैसला पार्टी के लिए सही साबित हुआ। साल 1989 में भाजपा ने 85 सीटें जीती।
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