लखनऊ। Mithilesh Chaturvedi Passes Away: मिथिलेश चतुर्वेदी लखनऊ रंगमंच की देन थे। शौकिया तौर पर रंगमंच से जुड़ने वाले मिथिलेश चतुर्वेदी ने अंततः अभिनय को ही अपना करियर बना लिया था। सरकारी नौकरी छोड़कर उन्होंने रंगमंच और फिल्मों की यह दुनिया चुनी थी।
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लखनऊ के चारबाग में नाका हिंडोला के पास रहने वाले मिथिलेश चतुर्वेदी विकासदीप भवन में रजिस्ट्रार एंड फर्म सोसायटी में कार्यरत थे। बहुत दिनों तक तो नौकरी और रंगमंच का तालमेल जमता रहा, पर बाद में उन्होंने नौकरी छोड़कर मुंबई जाकर फिल्मों में भाग्य आजमाने का निर्णय लिया।
दर्पण के नाटक शर्विलक में शर्विलक की मुख्य भूमिका निभायी
वरिष्ठ रंगकर्मी आरएस सोनी बताते हैं कि मिथिलेश चतुर्वेदी ने 1979 में बंसी कौल के निर्देशन में दर्पण के नाटक शर्विलक में शर्विलक की मुख्य भूमिका निभायी। ये उनका दर्पण के साथ पहला नाटक था। बाद में सूर्यास्त, बलराम की तीर्थयात्रा, शनिवार रविवार, मुख्यमंत्री तथा दर्पण के कई अन्य नाटकों में यादगार भूमिकाएं कीं। 1991 में वह मायायानगरी मुंबई से जुड़े।
वरिष्ठ रंगकर्मी सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने बताया कि लखनऊ के बाल संग्रहालय में उनका जाना होता था। मिथिलेश चतुर्वेदी ने रंगमंच का कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं लिया था, निरंतर अभ्यास से वह एक परिपक्व कलाकार के रूप में स्थापित हुए। सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ ने बताया कि मिथिलेश चतुर्वेदी के साथ किया एक खास नाटक हमेशा स्मृतियों में ताजा रहेगा। उस नाटक का नाम जय सिद्धनाथ था।
इसमें मिथिलेश चतुर्वेदी (Mithilesh Chaturvedi Passes Away) ने ओंकारी का किरदार निभाया था। मिथिलेश ने एक मुश्किल किरदार को बहुत सहजता के साथ निभाया था। वह एक जिंदादिल व्यक्ति था, चुटकुलेबाज और हंसने-हंसाने की प्रवृत्ति वाला एक शानदार कलाकार हमारे बीच से चला गया। मिथिलेश चतुर्वेदी के निधन पर अभिनेता अतुल श्रीवास्तव, दधीराज समेत उनके कई मित्र कलाकारों ने अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दी।
पहला सीरियल था उसूल
मिथिलेश चतुर्वेदी ने एक बार इंटरव्यू में बताया था कि सबसे पहला प्रोजेक्ट सीरियल उसूल था। उसमें डेनी साथ थे। फिर डीडी नेशनल के शो न्याय में रोल मिला था। फिर सत्या मिली और फिल्म भाई भाई की। इसके बाद फिल्मों का सिलसिला चल पड़ा।