Martyr Chandrashekhar Harbola: 38 साल बाद शहीद चंद्रशेखर का घर पहुंचा पार्थिव शरीर

0
159
Martyr Chandrashekhar Harbola:

हल्द्वानी: Martyr Chandrashekhar Harbola: सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि ऑपरेशन मेघदूत में बलिदान हुए चन्द्रशेखर हर्बोला को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। उनकी स्मृति को हमेशा यादों में जिंदा रखने के लिए शहीद धाम में लगाया जाएगा।

BJP Parliamentary Board भाजपा के संसदीय बोर्ड का बुधवार को एलान

यह घोषणा सीएम ने शहीद के पार्थिव शरीर के घर पहुंचने के दौरान की। इस दौरान पूरा इलाका तिरंगे गुब्बारे से सजा हुआ था। बड़ी संख्या में लोग शहीद हर्बोला को श्रद्धांजलि देने के लिए गली व मकान छतों पर मौजूद रहे।

सीएम ने श्रद्धा सुमन अर्पित किया

सीएम ने कहा कि चंद्रशेखर के बलिदान पर उत्तराखंड ही नहीं पूरा देश गर्व करता है। बलिदानी के भतीजे राजेंद्र हर्बोला ने सीएम धामी से बलिदानी के मूल निवास बेंती से गांव तक सड़क बनाने की मांग की। इस पर सीएम के जल्द मांग पूरी करने का आश्वासन दिया।

करीब 15 मिनट दर्शन के बाद वह रवाना हुए। श्रद्धांजलि देने वालों में मंत्री गणेश जोशी, रेखा आर्य, मेयर जोगेन्द्र सिंह रौतेला, लालकुआं विधायक मोहन सिंह बिष्ट, विधायक राम सिंह केड़ा समेत सैकड़ों लोग मौजूद रहे।

आपरेशन मेघदूत में हुए थे शहीद

वर्ष 1984 में सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन मेघदूत’ (Operation Meghdoot) के दौरान लापता हुए शहीद चंद्रशेखर हरबोला (Martyr Chandrashekhar Harbola) , बैच संख्या 5164584 का 38 साल बाद पार्थिव शरीर बर्फ के नीचे बरामद हुआ। इसकी सूचना जैसे ही उनकी पत्नी को मिली, वह फूट फूटकर रो पड़ीं। तमाम स्मृतियां जो धूंधली हो रही थीं फिर से ताजा हो गईं। शहीद का परिवार दुख और गर्व में डूबा हुआ है।

भरापूरा है परिवार

शहीद चंद्रशेखर हरबोला (Martyr Chandrashekhar Harbola) आज जीवित होते तो 66 वर्ष के होते। उनके परिवार में उनकी 64 वर्षीय पत्नी शांता देवी, दो बेटियां कविता, बबीता और उनके बच्चों ने अंतिम दर्शन किए।

पत्नी शांता देवी उनके शहीद होने से पहले से नौकरी में थी, जबकि उस समय बेटियां काफी छोटी थीं।

पुल बनाने की सूचना पर निकली थी ब्रावो कंपनी

दुनिया के सबसे दुर्गम युद्धस्थल सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे की सूचना पर ऑपरेशन मेघदूत के तहत श्रीनगर से भारतीय जवानों की कंपनी पैदल सियाचिन के लिए निकली थी। इस लड़ाई में प्रमुख भूमिका 19 कुमाऊं रेजीमेंट ने निभाई थी।

क्या था ऑपरेशन मेघदूत

जम्मू कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जे के लिए भारतीय सेना जो ऑपरेशन चलाया उसे महाकवि कालीदास की रचना के नाम पर कोड नेम ऑपरेशन मेघदूत दिया। यह ऑपरेशन 13 अप्रैल 1984 को शुरू किया गया।

यह अनोखा सैन्य अभियान था क्योंकि दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला हुआ था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सेना ने पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया था। इस पूरे ऑपरेशन में 35 अधिकारी और 887 जेसीओ-ओआरएस ने अपनी जान गंवा दी थी।

Karnataka Veer Savarkar Poster: शिवमोगा में पोस्टर को लेकर दो गुटों में झड़प

LEAVE A REPLY